Home » कहानियाँ » मोटिवेशनल कहानियाँ » असफलता एक चुनौती है कहानी :- सुभाष चंद्र बोस की कहानी

असफलता एक चुनौती है कहानी :- सुभाष चंद्र बोस की कहानी

by Sandeep Kumar Singh
4 minutes read

असफलता एक चुनौती है लेकिन इस चुनौती का सामना तब ही किया जा सकता है यदि हमारे विचार और संकल्प दृढ़ हों। सुभाष चन्द्र बोस जी ने ये शब्द कहे थे :- “यदि हम एक विचार को स्वीकार करते हैं, तो हमें खुद को इसके लिए पूरी तरह से समर्पित करना होगा और इसे अपने पूरे जीवन को बदलने की अनुमति देनी होगी। एक अंधेरे कमरे में लाया गया प्रकाश जरूरी रूप से इसके हर हिस्से को रोशन करेगा। ” उन्होंने ये सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि अपने जीवन में कर के भी दिखाया। वो भी एक बार नहीं कई बार।

जहाँ तक मैं उनके बारे में पढ़ पाया हूँ, अपने जीवन में वो एक ही बार असफल हुए थे। और उस घटना को आज मैं आप सबके साथ इस कहानी में साझा करने वाला हूँ कि कैसे उन्होंने पूर्ण समर्पण और अपनी जिद के साथ असफलता और अपमान को सफलता और सम्मान में बदल दिया। पढ़ते ये घटना इस कहानी “असफलता एक चुनौती है:

असफलता एक चुनौती है

असफलता एक चुनौती है

ये उस समय की बात है जब भारत पर अंग्रेजो का शासन हुआ करता था। सुभाष चन्द्र बोस बचपन के दिनों में एक मिशनरी स्कूल में पढ़ते थे। जो अंग्रेजों द्वारा खोला गया स्कूल था। उस स्कूल में यूरोप और बाइबिल की ही ज्यादा शिक्षा दी जाती थी। जिसका प्रभाव सुभाष चन्द्र बोस पर भी पड़ा। वहां सात साल पढ़ने के बाद सुभाष चन्द्र बोस नए एक भारतीय स्कूल में दाखिला लिया।

एक दिन सुभाष चन्द्र बोस को बंगाली भाषा में गाय पर निबंध लिखने के लिए कहा गया। अंग्रेजों के स्कूल में पढ़े होने के कारण उनकी अंग्रेजी तो बहुत अच्छी थी लेकिन उनकी बंगाली एक दम ख़राब। मिशनरी स्कूल में पढ़ते समाय अव्वल रहने वाले सुभाष चन्द्र बोस यहाँ एक असफल विद्यार्थी साबित हो रहे थे। फिर भी उन्होंने जोड़-तोड़ लगाकर गाय पर निबंध लिख दिया। निबंध पढ़ने के बाद अध्यापक ने वही निबंध सारी कक्षा के सामने व्यंग्य के साथ पढ़ कर सुनाया। जिसे सुन उनकी सारी कक्षा के विद्यार्थी सुभाष चन्द्र बोस पर हंसने लगे।

बंगाली भाषा न आने के कारण और व्याकरण की जानकारी न होने के कारण सुभाष चन्द्र बोस असफल होकर सबके सामने हंसी के पत्र बन कर रह गए। वो खुद को बहुत हीन महसूस कर रहे थे। उनके साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। पढ़ाई के कारण उन्हें कभी कुछ कहने का किसी को मौका नहीं मिला था। परन्तु आज पढ़ाई के विषय बदल जाने के कारण उन्हें ये इस असफलता का अपमान सहना पड़ रहा था। वो उस समय कुछ नहीं कर सकते थे।

ऐसे समय में अगर कोई आम इन्सान होता तो शायद टूट कर बिखर जाता या अपने हुए अपमान को भूल कर आगे बढ़ जाता। परन्तु सुभाष चन्द्र बोस ने ऐसा नहीं किया। अपने हुए इस अपमान के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने इस असफलता को एक चुनौती के रूप में लिया। इसे अपने  दिल में रखा और अपनी इस असफलता के कलंक को मिटाने का संकल्प लिया। इसी दौरान उन्हें आत्मचेतना का ज्ञान हुआ और वे अति संवेदनशील हो गए।

इसके बाद हफ्ते-महीने बीतते रहे लेकिन उस असफलता और अपमान की बात वो कभी न भूले। समय बीतता गया और वार्षिक परीक्षायें आ गयीं। परीक्षायें आने के बाद जो परिणाम आया वो कुछ ऐसा था। सुभाष चन्द्र बोस नए सबसे ज्यादा अंक प्राप्त कर पहला स्थान प्राप्त किया था। बस इतना ही नहीं उनके सबसे अधिक अंक बंगाली भाषा में ही आये थे।

इस तरह उन्होंने अपने असफलता और अपमान को अपनी इस सफलता से धो दिया और संतुष्टि प्राप्त की। आखिर कुछ तो ख़ास था ही उनमें जो आगे चल कर वो भारत को आज़ादी दिलाने के लिए लड़ने वाले एक महान योद्धा बने।

ये घटना बस एक घटना मात्र नहीं, ये एक उदाहरण है उन लोगों के लिए जो परिस्थितियों के गुलाम हो जाते हैं। जिन्हें इस बात का भान नहीं कि असफलता एक चुनौती है। हरिवंश राय बच्चन जी नए भी अपनी एक कविता में कहा है’

” असफलता एक चुनौती है , इसे स्वीकार करो, क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।”

हम ही अपने जीवन को बदल सकते हैं और अपने अपमान को सम्मान में बदल सकते हैं बस हमें सबके सामने ये साबित करना कि हम असफलता और अपमान के नहीं बल्कि सफलता और सम्मान के हक़दार हैं।

तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह ” असफलता एक चुनौती है ” कहानी? अपने विचार कमेंट बॉक्स में देना न भूलियेगा।

पढ़िए सफलता के लिए प्रेरित करती यह बेहतरीन रचनाएं :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.