अंधविश्वास पर छोटी कहानी
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और आज सबसे ज्यादा विकसित प्राणी भी। एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य अलग-अलग समूहों, जातियों, धर्मो आदि में बंटा हुआ है। उनसे सम्बंधित बहुत सारे रीती-रिवाजों, प्रथाओं, मान्यताओं को पूरा करते हुए जीवन बिताते हैं।
मैं इन रीती रिवाजों का वरोधी तो नही हूँ, और न ही मैं इनका समर्थक हूँ। मैं ये मानता हूँ की हम जो भी रीती-रिवाज या प्रथा मनाते हैं, उनको किये जाने का असली कारन हमें पता होना चाहिए। क्योंकि अधिकतर लोगों को ये नहीं पता होता और वो लोग उन रिवाजों को बिलकुल इस कहानी की तरह मानते रहते है। ये एक पुरानी लोक कथा है। इस अंधविश्वास पर छोटी कहानी के जरिये ये बताया गया है की अंधविश्वास कैसे फैलता है।
ऋषि का तप और बिल्ली का सच
बात कुछ समय पहले की है। एक राज्य में एक बहुत ही प्रसिद्ध ऋषि रहते थे। वो अपने ध्यान, तप और ज्ञान के लिए प्रसिद्द थे। अलग-अलग गाँव-नगरों में जाके वो ज्ञान बांटा करते थे। वो जहाँ भी जाते थे, लोग उनका बड़ा ही आदर सम्मान करते थे।
एक बार वो ऋषि एक नगर में गए हुए थे। वहां एक वाटिका में वो रहते थे। उस वाटिका में एक कुटिया थी जहां वे रुके हुए थे और वाटिका में एक पेड़ के नीचे रोज वो ध्यान लगाने बैठते थे। वहां के लोग रोज उनके दर्शन करने और उन्हें सुनने आते थे। कुछ युवा तो उनके शिष्य भी बन गये थे। उनके रहने-खाने की व्यवस्था देखते थे और उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे।
यहाँ उस ऋषि के पास कहीं से एक बिल्ली भी आ गयी थी। ये बिल्ली ऋषि की पालतू हो गयी थी और अधिकतर समय उनके साथ ही रहती थी। ऋषि भी दयालु थे इसलिए बिल्ली को अपने साथ रखे हुए थे।
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लेकिन समस्या ये थी, ऋषि जब भी ध्यान में बैठने के लिए अपने स्थान पर जाते थे तब वो बिल्ली भी वहाँ पहुँच जाती थी। जब ऋषि अपना आसन लगाए ध्यान के लिए बैठने ही वाले होते थे कि वो बिल्ली उनके पास आ जाती थी और खेलने लगती थी। कभी वो ऋषि के गोद में लोट जाती थी, कभी ऋषि को खरोचने लगती, कभी उनके ऊपर चढ़ने की कोशिश करती। इस प्रकार वो बिल्ली ऋषि को शांति से ध्यान में बैठने ही नहीं देती थी।
ऋषि जब बिल्ली के इस चंचलता से परेशान हो गए तब उन्होंने एक उपाय सोचा। अगले दिन जब वो ऋषि अपने आसान पर आये तो बिल्ली भी उनके साथ वहाँ पहुँच चुकी थी लेकिन इस बार ऋषि ने ध्यान पर बैठने से पहले एक काम किया। पास ही एक छोटा पेड़ था। ऋषि ने उस बिल्ली को उस पास वाले पेड़ से बांध दिया और फिर शांति से ध्यान लगाने बैठ गए।
इसके बाद से रोज यही होने लगा। ऋषि ध्यान पर बैठने से पहले उस बिल्ली को पेड़ से बांध दिया करते थे। फिर आराम से ध्यान लगाने बैठते थे। ध्यान से उठने के बाद वो बिल्ली के बंधन को छोड़ देते थे। प्रतिदिन यही सिलसिला चलने लगा। उनके शिष्य रोज यह देखते थे, लेकिन कोई ऋषि से पूछ नही पाता था।
कुछ समय बाद वो ऋषि वहां से चले गये। ऋषि के जाने के बाद उनके शिष्यों ने ये सोचा की वो लोग भी उस वाटिका में ध्यान लगाया करेंगे। और जैसा की उन्होंने ध्यान लगाने की योजना बनाई थी, तो तय तिथि और समय पर वो लोग पहुँच गये उस स्थान पर। लेकिन उन शिष्यों ने ये देखा था की उनके गुरु ध्यान लगाने से पहले एक बिल्ली को उस पेड़ से बाँध देते थे और ध्यान से उठने के बाद ही उसे बंधन मुक्त करते थे।
तो वो शिष्य सबसे पहले तो कहीं से एक बिल्ली ढूँढ कर लाये। उसके बाद उसे पेड़ से बांध दिए फिर ध्यान लगाने बैठ गए। उसके बाद से यही सिलसिला चलने लगा। धीरे-धीरे लोग ये देखने लगे और बात फैलने लगी की एक पहुंचे हुए ऋषि ने किसी बड़े कारन से ये करने का नियम बनाया है। और इस तरह से ये एक प्रथा बन गयी और फिर जब भी कोई ध्यान लगाने बैठता था तो पहले एक बिल्ली को पास के पेड़ से बांध देता था।
तो इस प्रकार से ये कहानी हमें बताती है कि एक अंधविश्वास कैसे फैलता है। हमें चाहिए की इस प्रकार के किसी भी काम, रीती-रिवाज या प्रथा को मानने से पहले हमें उनके बारे में ज्ञान बटोर लेना चाहिए।
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