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अधूरे ख्वाब पर कविता :- एक अधुरा ख्वाब बुना हूँ | Adhura Khwab Poetry


हमारे जीवन में हम कई ख्वाब सजाते हैं जो हमें ही पूरे करने होते हैं। मगर उन ख्वाबों के बहकावे में कई बार कुछ ऐसी उम्मीदें बंध जाती हैं जिनका पूरा होना हमारे बस में नहीं होता। वो ऐसी बातें होती हैं जिनके पूरे होने के लिए किसी और की भी जरूरत होती है। और जब वाही खास हमारी जिंदगी में नहीं होता तो क्या हाल होता है हमारा उन अधूरे ख्वाबों के साथ? आइये पढ़ते हैं अधूरे ख्वाब पर कविता में

अधूरे ख्वाब पर कविता

अधूरे ख्वाब पर कविता

एक अधूरा ख्वाब बुना हूँ
आकर पूरा कर दो तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

सावन की बरखा में कैसे
प्यासा मन ललचाया था,
देख अतृप्त आत्मा की छाया
पागल मन हर्षाया था,
सुनी गोद का बोध कराके
ओझल ना हो जाना तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

घड़ियाँ बीत रही विरह की
तुझमे ख़ुद को खोज रही,
चमक चाँदनी से क्यूँ कम है
बिंदिया मेरी ये सोच रही,
गर स्थान नहीं है हृदय में
रज चरण कमल की दे दो तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

तुम क्या जानो भीगी पलकें
कितने अरमानों के अश्क बहे,
इन कंपित अधरो ने भी अब
पिया मिलन के गीत सहे,
श्वासों की बलखाती लहरे
उन्हें किनारा दे दो तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

विरह-वेदना हुई अंतहीन
घायल नागिन सी ताक रही,
निज मन के दीपक में आशा
ज्योतिशिखा अब कांप रही,
मधु-ऋतु चंचल यौवन की
संकुचित ना हो प्रिय आओ तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

एक अधूरा ख्वाब बुना हुँ
आकर पूरा कर दो तुम,
ममता से खाली है आँचल
खुशियाँ जीवन में भर दो तुम।

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प्रवीण

मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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