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अभिमान पर कविता – पद्यकथा ‘ मेंढक और बैल ‘ में राजा मेंढक अपने को दुनिया का सबसे बड़ा प्राणी होने का भ्रम पाल लेता है । उसके बच्चों ने जब एक बैल को देखा और राजा मेंढक से कहा कि दुनिया में आपसे भी बड़े जीव हैं, लेकिन राजा मेंढक सच को मानने से मना कर देता है और अपने को बैल से भी बड़ा सिद्ध करने के लिए अपना पेट फुलाने लगता है । अन्त में पेट फटने से राजा की मृत्यु हो जाती है । इस पद्यकथा से शिक्षा मिलती है कि हमें झूठे अहंकार में पड़कर स्वयं को औरों से बड़ा नहीं समझना चाहिए । अपनी योग्यता को जाने बिना और से तुलना करना नुकसानदेह हो सकता है ।
अभिमान पर कविता
एक घने जंगल के अन्दर
था छोटा -सा पोखर,
वहाँ मेंढकों की इक बस्ती
रहती निर्भय होकर ।1 ।
सभी मेंढकों ने मिल अपना
एक चुना था राजा,
कीट पतंगे ढेरों खाकर
था वह मोटा – ताजा ।2 ।
दूर दूर तक उस पोखर के
पड़ी जगह थी खाली,
जिससे राजा लगा समझने
अपने को बलशाली ।3 ।
जीव -जगत में वह खुद को ही
सबसे बड़ा समझता ,
हाव – भाव में उसके हरदम
रहता अहं झलकता ।4 ।
बँधी हुई थी बस पोखर से
उसकी रामकहानी ,
बाहर की दुनिया तो उसने
कभी नहीं थी जानी ।5 ।
एक बार बच्चे बोले थे
पास पिता के आकर ,
‘पापा ! क्या हम घूम जरा लें
घर से बाहर जाकर ‘ ।6 ।
राजा बोला – इस पोखर को
छोड़ कहीं ना जाना,
बड़े -बुजुर्गों ने इसको ही
अपनी दुनिया माना । 7 ।
इस पोखर से बड़ा नहीं है
जग में कहीं जलाशय,
और बड़ा मैं सबसे प्राणी
तनिक न इसमें संशय ।8 ।
पर बच्चे तो ठहरे बच्चे
अड़े रहे वे जिद पर,
बोले – हम तो ऊब गए हैं
एक जगह ही रहकर । 9 ।
राजा को बेटों के आगे
पड़ा अन्त में झुकना,
बोला -जल्दी से घर आना
अधिक देर ना रुकना । 10 ।
चारों बच्चे चले उछलते
आपस में बतियाते,
सुन्दर -सुन्दर दृश्य राह के
उनको बहुत लुभाते ।11 ।
पहली बार उन्होंने देखी
इतनी विस्तृत धरती,
दूर – दूर फैली हरियाली
मन उनका थी हरती ।12 ।
तभी दिखाई पड़ा उन्हें था
जल से भरा सरोवर,
कहते -इतना बड़ा न हमने
अब तक देखा पोखर ।13 ।
कूद पड़े चारों ही उसमें
जमकर लगे नहाने,
देरी से घर जाने के भी
ढूँढे कई बहाने ।14 ।
तभी जानवर एक सामने
उनको दीखा आते,
अनहोनी की आशंका से
अब थे वे घबराते । 15 ।
कभी नहीं देखा था उनने
ऐसा तगड़ा प्राणी,
फटी रह गई आँखें उनकी
मौन हो गई वाणी ।16 ।
डरकर बोले -आप कौन हैं
हमने ना पहचाना,
हाथ आपके आगे जोड़ें
कृपया हमें न खाना ।17 ।
वह बोला -मैं बैल यहाँ पर
पानी पीने आया,
कभी नहीं पर इससे पहले
तुम्हें यहाँ पर पाया ।18 ।
क्यों खाऊँगा तुम्हें भला मैं
मैं ना मेढक खाता,
हरी घास खाकर मैं बच्चों
अपना काम चलाता ।19 ।
बच्चों को हो गया भरोसा
नहीं बैल से कुछ डर,
तब पूछा – यह तो बतलाओ
बड़े बने क्या खाकर ।20 ।
बहुत बड़े हैं पिता हमारे
ढेरों कीड़े खाते,
किन्तु आपके आगे उनको
कहीं नहीं हम पाते ।21 ।
हँसकर कहा बैल ने उनसे
पिता तुम्हारे मेंढक,
बड़े सभी से होते होंगे
वे बस्ती में बेशक ।22 ।
एक बैल से किन्तु बड़े वे
कभी नहीं हो सकते,
वैसे मुझसे बड़े जानवर
इस जंगल में रहते ।23 ।
धरती पर है सब जीवों की
अलग अलग संरचना,
बात नहीं होती है अच्छी
खुद को बड़ा समझना ।24 ।
मेंढक के बच्चों को यह सुन
हुई बहुत हैरानी,
सुनी बैल से कितनी ही फिर
उनने कथा – कहानी ।25 ।
शाम हुई तो घर को लौटे
वे हँसते मुस्काते,
और पास में जा राजा के
सारी बात बताते ।26 ।
बोले – पापा आप नहीं हो
बहुत बड़े ही सबसे,
बड़े जीव तो कई आपसे
हैं जंगल में कबसे । 27 ।
बड़ा आपसे कई गुना था
बैल आज जो दीखा,
वह बोला – मेंढक हो सकता
मेरे नहीं सरीखा ।28 ।
और कहा – मुझसे भी हैं
इस वन में जीव बड़े ,
बड़ा दीखने की जिद पर वे
किन्तु न कभी अड़े ।29 ।
बच्चों की यह बात सुनी तो
राजा था गुस्साया ,
बोला – मुझसे बड़ा न प्राणी
अब तक जग में आया ।30 ।
अरे बैल ने तुम बच्चों को
अच्छा मूर्ख बनाया,
पेट फुलाकर बड़ा रूप है
उसने तुम्हें बताया । 31 ।
बच्चे बोले – कल प्रातः को
आप साथ में चलना,
उचित नहीं झूठी बातों से
अपने को ही छलना ।32 ।
राजा बोला – तुम छोटे हो
सच कैसे जानोगे ,
रूप दिखाता हूँ मैं असली
तब जाकर मानोगे ।33 ।
इतना कह वह राजा मेंढक
लगता पेट फुलाने ,
बड़ा सभी से वही जगत में
बच्चों को जतलाने ।34 ।
साँस रोककर बार बार वह
अपना पेट फुलाता ,
क्या था बैल बड़ा वह इतना
साथ पूछता जाता । 35 ।
बच्चे कहते – बैल बड़ा था
इससे भी कई गुना,
यहसुनकर राजा ने अपना
गुस्से से शीश धुना । 36 ।
झेंप छुपाता राजा बोला –
यह था मात्र नमूना,
जोर लगाकर पेट फुलाया
फिर उसने था दूना ।37 ।
बोला वह – क्या बैल बड़ा था
अब भी मुझसे ज्यादा,
बड़ा सिद्ध अपने को करने
था राजा आमादा ।38 ।
बच्चे बोले – पापा अब भी
बैल बड़ा था निश्चित,
पर क्यों आप हुए जाते हो
बिना बात ही चिन्तित ।39 ।
अरे बैल वह बोला – हम तो
रहे जन्म से भारी,
ठीक नहीं करना मेंढक की
कद में होड़ हमारी ।40 ।
‘क्यों खुद को पीड़ा देते हो’
आकर बोली रानी,
बाहर की दुनिया तो हमने
नहीं आज तक जानी ।41 ।
‘महाराज अब हठ भी छोड़ो’
कहते थे दरबारी,
लेकिन राजा की तो जैसे
अक्ल गई थी मारी ।42 ।
नहीं चाहता था वह राजा
अपनी इज्जत खोना,
अपने ही बच्चों के आगे
अब अपमानित होना ।43 ।
रहा फुलाता वह अपने को
गहरी साँसें खींचे,
दर्द सहन करता जाता था
दोनों जबड़े भींचे ।44 ।
पेट फूलकर घड़ा हो गया
आँखें आई बाहर,
धरती पर गिर पड़ा अचानक
राजा चक्कर खाकर ।45 ।
जिसकी थी आशंका सबको
आखिर में वही घटा,
सबके सब रह गए देखते
राजा का पेट फटा ।46 ।
और गोद में आज मौत की
वह राजा था सोता,
छोड़ गया था अपने पीछे
बच्चों को भी रोता । 47 ।
दुःख में डूबे थे दरबारी
बिलख रही थी रानी,
भिगो गई थी सबकी आँखें
राजा की नादानी ।48 ।
बच्चो ! राजा नहीं बड़ा था
था मेंढक साधारण,
लेकिन जान गँवा बैठा वह
अहंकार के कारण ।49 ।
बिना योग्यता के औरों से
तुलना कभी न करना,
भारी कीमत इसकी बच्चो !
देनी होगी वरना ।50 ।
पढ़िए :- घमण्ड और दिखावे पर कविता ” मटकू मेंढक “
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धन्यवाद।
3 comments
बहुत लाज़वाब लिखा है महोदय आपने
कोई भी आपकी लिखी कविताओं को ही चुरा सकता है आपके हुनर को नहीं
ख़ैर ये उचित नहीं है
लेकिन किसी की प्रवृति थोड़ी ही ना बदली जा सकती है जब तक वो ना बदलना चाहे।
बहुत अच्छा लगा आपका कविता मुझे
मैं भी कुछ कविताएँ लिखने का तरीका सीख रहा हूँ
आशा है आप मेरी इसमें मदद अवश्य करेंगें
मैं कोई ब्लॉगर नहीं हूँ और ना ही मुझे उसका कोई शौक है
बस अपनी खुशी के लिए लिखता हूँ
दो चार लोगों तक पहुंच जाय यही मेरे लिए काफ़ी है
मुझे आशा है आप जरूर मेरी मदद करेंगे।
धन्यवाद
अभय जी आप अपनी रचनाएं blogapratim@gmail.com पर भेजिए। वहीं से हम आपकी कोई भी सहायता कर सकते हैं।
नमस्कार अभय जी…. आप हमें blogapratim@gmail.com पर संपर्क करें। हम आपकी हर संभव सहायता करने का प्रयास करेंगे। धन्यवाद।