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पहली मुलाकात और उसके बाद मोहब्बत में होने वाला हर काम यादों की किताब में इस कदर दर्ज हो जाता है कि उन लम्हों को याद कर दुबारा से जीने का दिल कर आता है। मगर ऐसा संभव नहीं हो पाता। फिर हर कवि या शायर अपने उन जज्बातों को शब्दों के रूप में कैसे लिखता है ये बता रहें हैं हरीश चमोली जी इस कविता ‘ अब वो दौर क्यों नहीं आता ‘ में :-
अब वो दौर क्यों नहीं आता
क्या याद है तुझे वो वक़्त
जब मिले हम पहली दफा
मुझे देख तेरे मुस्कुराने का
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
मेरे होने से तेरा नूर खिले
जिसे देख मेरा मन हर्षाता
मेरे हाथ में तेरा हाथ रहे
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
पहली मुलाकात की वो कॉफी
जिसके प्याले में दिल बना था
उस मिठास सा मुझमें घुल जाने का
अब वो दौर क्यों नहीं आता।।
मिलने को तुझसे सुबह शाम
मैं था बहाने लाख बनाता
तू भी मुझसे मिलने को तरसे
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
क्या याद है वो सारी कसमें
कभी न छोड़ जाने का वादा
प्यार में जीने मरने की रस्मों
अब वो दौर क्यों नही आता।
लाल कागज में लपेटकर दिया
वो पहला तोहफा रखा है संभाला
उन उपहारों की बरसातों का
अब वो दौर क्यों नही आता।
बात बात पर गुस्सा दिलाकर
फिर झट से मनाने था मैं आता
रूठने मनाने के सिलसिलों का
अब वो दौर क्यों नही आता।
सूनी पड़ी दिल की किताबें
पढ़ने को कुछ नहीं भाता
तेरा नाम लिख कर मिटा देने का
अब वो दौर क्यों नही आता।
लग रहा है यहां वीराना मुझे
अपना ही शहर लग रहा अनजाना
तेरी बाहों में लिपटे रहने का
अब वो दौर क्यों नही आता।
अब रातें मुझें शमशान हैं लगती
दिन में भी सुकून कहीं नहीं पाता
खुशनुमा बिताये हसीन लम्हों का
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
आज नहीं है तू साथ मेरे
मेरी नींदों में तेरा ख्वाब है आता
इक आवाज से तू मेरे पास आ जाये
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
क्या याद है तुझे वो वक़्त
जब मिले हम पहली दफा
मुझे देख तेरे मुस्कुराने का
अब वो दौर क्यों नहीं आता।
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मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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धन्यवाद।