Home » विविध » आज के शिक्षक | गुरु, शिक्षक और शिक्षाकर्मी आज समाज में इनका सम्मान क्यों कम है

आज के शिक्षक | गुरु, शिक्षक और शिक्षाकर्मी आज समाज में इनका सम्मान क्यों कम है

by Chandan Bais
8 minutes read

हमारे भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया जाता है। कबीर दास जी ने भी अपने एक दोहे में कहा है:

गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय। 
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये।

इतिहास में जब यहाँ गुरुकुल शिक्षा पद्धति चलती थी। तब गुरु और शिष्य आश्रम में रहते थे। वहां छात्रों  को नैतिक शिक्षा, व्यावहारिक शिक्षा दी जाती थी। गुरु और शिष्य के बीच एक अलग ही भक्तिमय सम्बन्ध होता था। गुरुओं को राष्ट्र निर्माता भी कहते है। विद्यार्थियों का, समाज का, देश का और पूरी दुनिया का भविष्य वो बिगाड़ या सुधार सकते है। आप चाणक्य और चन्द्रगुप्त की कहानी देख सकते है। वर्तमान में हमारे गुरु या कहे आज के शिक्षक किस तरह से इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है आइये देखते है।

आज के शिक्षक

आज के शिक्षक | गुरु, शिक्षक और शिक्षाकर्मी आज समाज में इनका सम्मान क्यों कम है

बात तब की है जब मैं, डिप्लोमा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। मेरे कॉलेज के सामने एक स्टेशनरी की दुकान थी। उस स्टेशनरी वाले के साथ हमारी अच्छी जान पहचान हो गयी थी। तो अक्सर खाली टाइम में या कॉलेज के ब्रेक टाइम में हम उसके पास ही बैठे रहते थे। बात एक शाम की है। हम लोग उसी स्टेशनरी की दुकान में बैठे थे। तभी एक अधेड़ उम्र का आदमी वहां आया। वो स्टेशनरी से कुछ रजिस्टर और दूसरे सामान खरीदने लगा। उनकी बातों से हमें पता चला की वो नजदीक के एक गाँव में स्कूल में प्रधानपाठक है। उन्होंने एक-दो रजिस्टर, अपने लिए एक पेन और दो चार और सामान ख़रीदा।

लेकिन आश्चर्य में डालने वाली बात ये थी की जब उन्होंने उन सामानों का बिल बनवाया तब उसने दुकान वाले से कहा, की हर सामान के रेट में २०-३० रूपए बढ़ा के बिल बना दे। मुझे समझते हुए देर ना लगी की क्या मामला है। दरअसल स्कूलों में ऑफिस के काम के लिए जो सामान उपयोग होते है, जैसे की रजिस्टर वगैरह, ये सब सरकारी खर्चे से आते है। और ये मास्टर जी, उसी सामान का बिल ज्यादा बनवा के, थोड़े से पैसे खाना चाहते थे। यहाँ तक की उन्होंने खुद के लिए जो पेन ख़रीदा था उसे भी बिल में डलवा दिया वो भी रेट बढ़वा के।

लाख-दो लाख की हेरा-फेरी होती तो भी चलो समझ आता है। इन्सान है कभी-कभी नियत डोल जाती है। लेकिन २०-50 रुपयों के लिए नियत डोलाए, और वो भी एक शिक्षक। क्या ऐसे इन्सान को हम गुरु कह सकते है? ऐसे लोगो के कंधो पर हम भविष्य निर्माण का काम सौंप सकते है? अब जिसके खुद के दिल में बेईमानी भरी होगी वो किस तरीके से दूसरों को ईमानदारी सिखाएगा?

एक और शिक्षक है हमारे गाँव के स्कूल में। वो अधिकतर समय शराब के नशे में रहता है। और स्कूल आने के बाद भी पीने की जुगत में लगा रहता है। गाँव के लोगों और अपने स्कूल के बच्चों के पालकों के साथ भी पीने का प्रोग्राम बनाते है। गाँव के सारे लोग उसे शिक्षक कम और एक शराबी के रूप में ज्यादा जानते है। गाँव के बच्चे भी। अब उसके स्कूल में कोई बच्चा जायेगा पढ़ने ये जानते हुए की उसके शिक्षक शराबी है। तो उस विद्यार्थी पे क्या असर होगा? वो क्या सिखायेंगे बच्चो को? बच्चे क्या सीखेंगे उसे देखकर?

indian teachers

 

ये एक अकेला उदाहरण नही है। अपने आप पास देखिये, ऐसे कई घटनाएँ देखने को मिल जाएँगी। अखबारों, समाचार चैनलो में इससे भी बुरी खबरे आती है शिक्षकों के बारे में। ऐसे ही लोग है जिनके कारन गुरु जैसे सबसे ज्यादा सम्माननीय पद का सम्मान घटा है। और शिक्षा का स्तर नाली में गिर गया है। आज शिक्षक बनने को लोग निचली स्तर के काम के रूप में देखने लगे है।

हमारी भारतीय संस्कृति बहुत मामलों में भावनातमक ज्यादा और तार्किक कम है। कबीर दास जी ने वो दोहा लिख दिया। और हम लोग भावनाओं में बहके आज भी गुरु पूर्णिमा, शिक्षक दिवस जैसे दिवस मनाते रहते है और गुरु को सबसे बड़ा और पूजनीय कहते है। लेकिन आज के ज़माने में गुरु के अवेलेबल फॉर्म “शिक्षक” के लिए ये सही नहीं बैठ रहा है।

मैंने अपने जीवन के करीब १६-१७ साल एक विद्यार्थी के रूप में निकाले हैं। इतने साल में मैं स्कूल और कॉलेज में बहुत से शिक्षकों से जुड़ा। लेकिन अब तक मुझे एक भी शिक्षक ऐसे नहीं मिले जिन्हें मैं कबीर दास जी के दोहे में फिट कर सकूँ।


पढ़िए: विद्यार्थी जीवन का कटु सत्य


आजकल तो शिक्षक की जगह शिक्षाकर्मी आ गये है। जब स्कूलो में पढ़ाई चल रही होती है तब ये लोग बीच में ही स्कूल छोड़ कर सरकार से अपनी वेतन बढ़वाने और दूसरी मांगो को लेकर हड़ताल करने बैठ जाते है। स्कूल और बच्चों की पढ़ाई जाये तेल लेने। उन्हें अपने विद्यार्थी के भविष्य, गुण-अवगुण, संस्कार, नैतिक-मानवीय गुणों इन सबकी कोई चिंता नहनी होती। उन्हें बस सिलेबस पूरा करवाना है बस।

ऐसे लोग शिक्षक क्यों बन जाते है?

जाहिर सी बात है, 90 प्रतिशत से अधिक लोग सिर्फ वेतन पाने के लिए शिक्षक बनते है। खैर इसमें कोई बुराई नही है। काम का उचित मूल्य हर किसी को मिलना चाहिए। लेकिन अब आप शिक्षक बन गये है। वेतन तो आपको मिलेगा ही। अपने सोच में अब वेतन को हटा के शिक्षक जैसे सोच लाओ। लेकिन ऐसा नही होता। ड्यूटी में गये। हाजिरी दिए। सिलेबस पूरा किये और वेतन लिए। १० प्रतिशत से भी कम लोग दिल से दुसरो को शिक्षा देने के लिए शिक्षक बनते है। ऐसी लोगो की मैं इज्जत करता हूँ।

जो लोग शिक्षक बनने के लायक नही है वो लोग शिक्षक कैसे बन जाते है?

जाहिर सी बात है, हमारे देश का सिस्टम। बहुत से लोग अपनी जाति की वजह से शिक्षक बन जाते है। कुछ लोग घूस देके। कुछ लोग बेकार सी चयन प्रक्रिया पूरा करके। बहुत ही कम लोग है जो अपने काबिलियत के वजह से शिक्षक बनते है।

भ्रष्टाचार, बेईमान, बुरे लोग कहाँ नहीं हैं? हर संस्था में हैं। लगभग सभी जगह सभी तरह के लोग गलत काम करते है। फिर मैं सिर्फ शिक्षकों के लिए ही ये सब बाते क्यों बोल रहा हूँ? वो भी तो इन्सान है उन्हें भी तो हक है दूसरों के जैसे रहने का।

शायद मैंने कभी ऐसी कोई बात सुनी थी, “बुराइयां किस इन्सान में नहीं  होती? यहाँ तक की भगवान में भी बुराइयाँ हो सकती है। सिर्फ एक गुरु ही ऐसा प्राणी है जो बुराइयों से रहित होता है।”

शिक्षक किसी भी समाज का सबसे अहम कड़ी होता है। भविष्य सुधारना या बिगड़ना इन्ही से शुरू होता है। जैसी शिक्षा ये लोग देंगे वैसा समाज बनेगा। शिक्षक होना अपने आप में ईमानदार और सच्चा इन्सान होना है। आप पर जिम्मेदारियां होती है समाज का, भविष्य का, पूरे मानव जाति का। ऐसे में एक शिक्षक को बेईमान, बुरा और भ्रष्ट होने का कोई अधिकार ही नहीं है। मैं तो ये कहता हूँ की एक शिक्षक को कोई अधिकार ही नहीं है किसी प्रकार के गलत कार्य करने का। अगर आपको ऐसा कुछ करना है तो शिक्षक ही ना बनिए।

मेरी नजरों में गुरु वो है, जो जीवन को बेहतर बनाते है। शिक्षक वो है जो कोई काम की चीज या कला सिखाते है। जो सिर्फ कुछ जानकारियों, खबरों आदि को पढ़ाते है उन्हें मैं क्या कहूँ?

(ऐसी बात नही है की यहाँ अच्छे शिक्षक या गुरु नहीं है। है ऐसे लोग अपनी क्षमता के हिसाब से समाज के लिए प्रेरणादायी काम कर रहे है। लेकिन ऐसे लोगो की संख्या बहुत ही कम है। इसलिए इन लोगों की भीड़ में वो हमें दिखाई नहीं देते। ये आर्टिकल उन सम्माननीय गुरुओं/ शिक्षको के चरणों की धुल मात्र है।)

आगे पढ़िए : हमारी आज की शिक्षा पद्धति में कमियां

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.